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अपना-अपना रास्ता / रामदरश मिश्र

वे निर्विघ्न रूप से
पहाड़ जैसे भारी कुकर्म करते गये, करते गये
और समाज में बड़ा बने रहे
उनके भीतर से या तो आवाज़ उठी नहीं
या कि उन्होंने उसे सुना नहीं

छोटी सी ग़लती उसने की-पहली बार
और पकड़ लिया गया
मानो किसी अदृश्य शक्ति ने सावधान किया-
”यह रास्ता तुम्हारा नहीं है वत्स
तुम तो सच के लिए बने हो“
और इस छोटी सी भूल के लिए
वर्षों उसकी आत्मा उसे धिक्कारती रही।
-31.3.2015