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अपना घर / नंद भारद्वाज
Kavita Kosh से
ईंट-गारे की पक्की चहार-दीवारी
और लौह-द्वार से बन्द
इस कोठी के पिछवाड़े
रहते हुए किराये के कोने में
अक्सर याद आ जाया करता है
रेगिस्तान के गुमनाम हलके में
बरसों पीछे छूट गया वह अपना घर -
घर के खुले अहाते में
बारिश से भीगी रेत को देते हुए
अपना मनचाहा आकार
हम अक्सर बनाया करते थे बचपन में
उस घर के भीतर निरापद अपना घर -
बीच आंगन में खुलते गोल आसरों के द्वार
आयताकार ओरे, तिकोनी ढलवाँ साळ
अनाज की कोठी, बुखारी, गायों की गोर
बछड़ों को शीत-ताप और बारिश से
बचाये रखने की पुख़्ता ठौर !
न जाने क्यों
ऐसा घर बनाते हुए
अक्सर भूल जाया करते थे
घर को घेर कर रखने वाली
वह चहार-दीवारी !