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अपना जल / सुधीर मोता
Kavita Kosh से
फिर मस्तक पर आया
यह अपना ही जल
अपने श्रम से हो प्रसन्न
यह दिन भी सुख से बीता
यह बहलाना अपने को
अपने से अपना ही छल
पहाड़ काट पत्थर ढोकर
मार्ग बनाया चल निकले
जो भोगा था भूल गये
सपने-सा अपना ही कल
सब हंसते थे हंसते हैं
उनकी अपनी राह अलग
वे झुंड के बहुमत में
पर विजयी एक अपना ही दल
भीतर अपने वह लाल रंग
नित हमसे खेल रहा होली
वह भीतर हम बाहर दौड़ें
तिलक भाल अपना ही जल।