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अपना जो था कल तक / हरिवंश प्रभात
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अपना जो था कल तक मेरा, आज मगर ग़ैर है।
भारत के एक ओर बबूल और दूसरी ओर बेर है।
विजय दिवस के अवसर पर है, वीर शहीदों को नमन,
रण में जिसने कर दिखलाया, दुश्मनों को ढेर है।
धोखा और फ़रेब जिसका धर्म और ईमान है,
क्या करेगा स्यार उसका, जब सीना ताने शेर है।
झुकना उनका काम नहीं जो फ़ौलादी हैं पहरेदार,
जब भी मिल जाए मौका, विजय में उन्हें क्या देर है।
दहशत गर्दी के भरोसे कब तक टिकेगा पाकिस्तान,
तिरंगा कहता है सम्हलना, तेरी ना तो ख़ैर है।
कहने के लहजे से ही कहने का अर्थ निकलता है,
जरा सम्हलकर बोलिए, दुनिया तो एक सैर है।
ख़ुद तो चल रहा बैशाखी पर, युद्ध करता है हिन्द से,
‘प्रभात’ नज़र डालो दुनिया पर, तेरे लिए अंधेर है।