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अपना तो ऐसा है साथ / साहिल परमार

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सोने के वास्ते फुटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ।

सिर्फ़ सालियों से नहीं धूपछाँव से झाड़ू
बाँधते गूँथते जाएँ
सब के आँगन तेरी निर्मल आँखों की तरह
साफ-सुथरे होते जाएँ,
अपना ही घर मैला रहता बालमजी
मक्खियों की गुनगुनाती तान,
सोने के वास्ते फुटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ।

लारी के पहिए के साथ-साथ जीवन का
एक-एक साल बहे चुप
मौज और मस्ती में झूमते है सब
और हम को ही सहने की धुप
ओढ़ने को खुला आकाश मेरे बालमजी
पहनने को ठिठुरती हुई रात
सोने के वास्ते फुटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ।

थके हुए बालम के थके हुए मन को
हलके हाथों से सहलाऊँ,
खुलेआम लिपट के सोएँ हमें देख चाहे
कोई कहे लाज से मर जाऊँ
तृप्त हो के सोएँ सारी रात मेरे बालमजी
अंगों की दूर हो थकान,
सोने के वास्ते फुटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ।

(आधी रात के वक्त फुटपाथ पर सोए श्रमिक-दम्पती को देखकर फूटी कविता। औरत झाड़ू बनाने का काम करती थी। बगल में हाथलारी (ठेला) पड़ी थी। आदमी शायद हाथलारी खींचता होगा।)

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार