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अपना दया रूपी जल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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अपना दया रूपी जल से
हमरा जीवन के धो के
निर्मल बनावे के होई, हे प्रभु,
निर्मल बनावे के होई।
ना त भला हम
तहरा पावन चरनन के
छू कइसे सकेब??
तहरा के अर्पित करे खातिर
जवन पूजा के डाली हम सजवली,
तवन त बाहरे धइल-धइल
मइल हो गइल।
अब भला अपना के
तहरा चरनन पर चढ़ाईं कइसे?
अतना दिन से हमरा,
ना कवनो कष्ट रहे ना कवनो व्यथा,
काहे कि अंगे-अभेंग मेभें हमर
मइल बोथाइल रहे
मलिनता समाइल रहे।
आज तहरा किरिपा से
मलिनता धोआ गइल,, त हृदय व्याकुल बा;
काँपत बा डर से कि
निरमल जे प्राण भइल
तेमें दाग लागे ना।