भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपना पीछा करता जाऊँ / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
अपना पीछा करता जाऊँ
लेकिन ख़ुद के हाथ न आऊँ
उसकी धुन पर नाचूँ, गाऊँ
यानी उनका दिल बहलाऊँ
उनकी शर्तों पर जीने से
बेहतर होगा, मर ही जाऊँ
उसने मुझको कितना समझा
किस-किसको समझाने जाऊँ
मुझमें कुछ औज़ार छिपे हैं
अब उनको हथियार बनाऊँ !