भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपना मज़हब / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
मज़हब अब मज़हब नहीं रहा
ताकत बन गया है, सियासत बन गया है
अब वक़्त आ गया है
खुद
अपना मज़हब बनने का...