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अपना सबकुछ छोड़ रहा है / अविनाश भारती
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अपना सबकुछ छोड़ रहा है,
घर का राशन जोड़ रहा है।
कहते वालिद-अब्बा जिसको,
कितना खुद को तोड़ रहा है।
खून-पसीना हर पैसा में,
सबकी किस्मत जोड़ रहा है।
लाख कमाता बेटा फिर भी,
अपना गुल्लक फोड़ रहा है।
जब से बैठे पापा घर में,
बेटा भी मुँह मोड़ रहा है।