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अपना सा हर शख्स हुआ है /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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अपना सा हर शख़्स हुआ है
ये कैसा उन्माद जगा है
सुख से है सौतेला रिश्ता
दुख जीवन का भाई सगा है
शिक्षा के प्रति देख समर्पण
वज़नी बच्चे से बस्ता है
आ मालूम करें असलीयत
बैनर का उन्वान भला है
अगला दिन अच्छा गुज़रेगा
हर दिन ये अनुमान मरा है