अपना सोचा होता कैसे?
करती मैं समझौता कैसे?
रक्त गिरा हो जिधर शज़र का
निकलेगा जल-सोता कैसे?
थकन नहीं होती गर तन में
बिन गद्दे श्रम सोता कैसे?
दुख में हाथ पकड़ लेता गर
तो अपनो को खोता कैसे?
दूरी हो दरिया से जिसकी
मारे जल में गोता कैसे?
ख़बर नहीं रखता बारिश की
बीज कृषक तब बोता कैसे?
भागीरथ तुम अगर न होते
मन पापों को धोता कैसे?