भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपना ही तमाशबीन-2 / दिनेश जुगरान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेईमानी और बर्बरता
का सारा कच्चा माल
बेतरतीब पड़ा हो चारों ओर
वहाँ सच्चे कारनामे
कब्रिस्तान के छोर पर ही
तलाश किए जा सकते हैं

वे सभी
बुजदिल और गद्दार नहीं हैं
लेकिन रास्ते हो गए हैं
इतने पेचीदे
और आँखों में उनके
लोगों ने
आश्वासन की पट्टी बाँध दी है
और एक बुत खड़ा कर दिया है
जो मसखरे होने के सारे हुनर जानता है
कीचड़ों के पहाड़ से गुज़रती यह सदी
आसमान को छू लेगी
ऐसा भ्रम फैलाया है लोगों ने

पहाड़ का मोह हमें
दलदल तक ले जा रहा है