अपनी-अपनी ज़िद के चलते मरहला बाक़ी रहा
मेरे हां से तेरे ना का फासला बाक़ी रहा।
खत्म उनसे था तअल्लुक फिर हुआ क्यों दिन तबाह
उम्र भर यादों का शायद सिलसिला बाक़ी रहा।
ज़िन्दगी तो ख़ूबसूरत आसरे में कट गयी
क्या बुरा है गर महब्बत का सिला बाकी रहा।
हमको अपनी ओर से कोई शिकायत कब रही
ज़िन्दगी का हमसे लेकिन कुछ गिला बाक़ी रहा।
चाहते थे उड़ न जाना जो हदे-परवाज़ तक
उनके अंदर दूर तक लेकिन ख़ला बाक़ी रहा।
जंग कैसी जंग है ये खत्म क्यों होती नहीं
बाद हर इक कर्बला के कर्बला बाक़ी रहा।
ज़िन्दगी के मोर्चे पर जूझता जो रह गया
उसके हक़ में अब तलक क्यों फ़ैसला बाक़ी रहा।