Last modified on 16 फ़रवरी 2009, at 00:33

अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / जीवित जल / अशोक वाजपेयी

तुम ऋतुओं को पसंद करती हो
और आकाश में
किसी-न-किसी की प्रतीक्षा करती हो –
तुम्हारी बाँहें ऋतुओं की तरह युवा हैं
तुम्हारे कितने जीवित जल
राहें घेरते ही जा रहे हैं।
औऱ तुम हो कि फिर खड़ी हो
अलसाई, धूप-तपा मुख लिए
एक नए झरने का कलरव सुनतीं
– एक घाटी की पूरी हरी गरिमा के साथ!