भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी ज़ुल्फ़ों को सितारों के हवाले कर दो / अब्दुल हमीद 'अदम'
Kavita Kosh से
अपनी ज़ुल्फ़ों को सितारों के हवाले कर दो
शहर-ए-गुल बादागुसारों के हवाले कर दो
तल्ख़ि-ए-होश हो या मस्ती-ए-इदराक-ए-जुनूँ
आज हर चीज़ बहारों के हवाले कर दो
मुझ को यारो न करो रहनुमाओं के सुपुर्द
मुझ को तुम रहगुज़ारों के हवाले कर दो
जागने वालों का तूफ़ाँ से कर दो रिश्ता
सोने वालों को किनारों के हवाले कर दो
मेरी तौबा का बजा है यही एजाज़ 'अदम'
मेरा साग़र मेरे यारों के हवाले कर दो