भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी तृप्ति बांध ली तुमने / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
अपनी तृप्ति बांध ली तुमने अब तो मेरी प्यास न बांधो।
जीवन में जो स्वप्न संजोए
वे सब बीत गए बातों में,
मेरा आधा-दीप बुझ गया
मेरे ही झंझावातों में।
संयम के अंतिम प्रहरों में मेरा प्रथम प्रयास न बाँधो।
अपनी तृप्ति बांध ली तुमने अब तो मेरी प्यास न बांधो।
मैं कटु सत्यों के मरघट में
मादक स्वप्न जला आया हूँ,
मैं अपनी मन्जिल को छूकर
कितनी बार चला आया हूँ।
ममता के जर्जर अंचल में अब मेरा सन्यास न बांधो।
अपनी तृप्ति बांध ली तुमने अब तो मेरी प्यास न बांधो।
भिन्न दिशाओं में दोनों की
विवश बह रही जीवन धारा,
मेरे आँसू सूख चुके हैं
भीग चुका है हृदय तुम्हारा।
मेरी आँखों के डोरों में अपना भृकुटि विलास न बाँधो
अपनी तृप्ति बांध ली तुमने अब तो मेरी प्यास न बांधो।