भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी धुन के पीछे चल / धीरज कंधई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया क्या कहती कहने दे
तू अपनी मस्ती रहने दे
तू न जरा अपने पथ से टल
तू अपनी धुन के पीछे चल
बाधाएँ आएँ आने दे
विपदाएँ आएँ आने दे
हँस हँस काँटों पर धर चल
तू अपनी धुन के पीछे

जो जी में हो जग में कर जा
अपनी धुन के पीछे मर जा
होगी तेरी कामना सफल
तू अपनी धुन के पीछे चल।