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अपनी पराजय से ख़ुश तो हो ? / पूजा कनुप्रिया

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ख़ुश तो हो न तुम
कि समाप्त कर चुके हो अब
मेरे जीवन से मेरे जीवन को
फूँक दिए सब सुनहरे ख़्वाब
मेरी पलकों के साथ
छीन ली सब संभावनाएँ
मेरे सुखद जीवन की
जला दी मेरी डोली
जिसकी कल्पना कर सदा मुस्कुराया
परिवार मेरा
अंगारे कर दी मुस्कान मेरी
जिसे बरसों पाला है सँवारा है
मेरे बाबा ने
राख कर दी चूड़ियों की खनक

ख़ुश तो हो न तुम
क्यूँकि
पायल की छनक पर
अब नहीं पलटेगा कोई
तुमने प्रेम किया मुझे
प्रेम का उपहार
सारा संसार न भूल पाएगा कभी
एक बदसूरत झुलसा हुआ शरीर
माँ बाबा के आँसू
संसार के सामने निरुत्तर शर्मिन्दा
मेरा कोई दोष न होते हुए
तुम्हारी वीभत्स मानसिकता को
सदा ढोएँगे वे
मैं समाप्त भी कर लूँ स्वयं को
परन्तु समाप्त न होगी मेरे देह की जलन
बाबा के स्वप्नों से
मेरी तड़प के दाग जाएँगे नहीं
माँ के आँचल से
लेकिन
अपनी मर्दानगी दिखाकर
अपना प्रेम अपना अधिकार जताकर
ख़ुश तो हो न तुम

सच कहो
क्या देख पाओगे तुम
मेरी तरह अपनी बहन को
पोंछ सकोगे यही आँसू
अपनी बीवी की आँखों से
नहीं, मेरे अज्ञात प्रेमी
तुममें इतनी शक्ति नहीं
पुरुष हो तुम
पर मेरे बाबा की तरह नहीं
तुम लाचार हो पराजित हो निर्बल हो
तभी जीत न सके
और अब कहो
अपनी इस पराजय से
ख़ुश तो हो न तुम