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अपनी पहचान / मधुसूदन साहा

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नीला अम्बर, धानी धरती
नित नूतन परिधान।
गंगा-यमुना कि धाराएँ
हैं अपनी पहचान॥

चंदन जैसी माटी इसकी
पावन और पुनीत।
दसों दिशाएँ गाया करतीं
इसके गौरव गीत॥
शाम-सबेरे कोयल कूके
वंशी छेड़े तान।
गंगा-यमुना कि धाराएँ
हैं अपनी पहचान॥

यहाँ ताल पर किस्म-किस्म के
पंछी आते रोज।
छोटी मछली, बेंग, केकड़े
जीभर खाते रोज॥
हमें बताते मिलकर रहना
है कितना आसान।
गंगा-यमुना कि धाराएँ
हैं अपनी पहचान॥