भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी बात / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे भीतर

धड़कता हुआ

धरती का कोई कोना है

जिससे हम

धरती पहचान लेते हैं


नदी है कोई

जिससे हम बाहर की नदी

देख लेते हैं


भीतर के आकाश में

शब्द हैं कुछ

कह पाते हैं

जिससे हम

अपनी भी बात को।