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अपनी बेटी के लिए-2 / प्रमोद त्रिवेदी
Kavita Kosh से
वह कोना जो अब खाली है,
भरा है-
स्मृतियों से।
बस, स्मृतियाँ ही रह जाती हैं
जिनके सहारे हम जीते हैं
समुद्र का किनारा छोड़ चुके हैं हम
है वह अब हमारी स्मृतियों में,
स्मृतियों में होते हैं अब हम वहाँ
जहाँ होता है- अचरज
हम अपनी आयु में नहीं
अब अचरज में जी रहे हैं!