भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी मंज़िल से बे ख़बर आंसू / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
अपनी मंज़िल से बे ख़बर आंसू
छोड़ कर जा रहे हैं घर आंसू
तेरी उल्फ़त के नाम कर डाले
हमने अपने तमाम तर आंसू
हम भी मक़तल की सम्त की कूच करें
रास्ता छोड़ दें अगर आंसू
मेरी सच्चाई की ज़मानत है
मेरा हर लफ्ज़ मेरा हर आंसू
हाल दिल का बयान कर देंगे
राज़दारी से बे ख़बर आंसू