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अपनी माँ के लिए / हेनरिख हायने / प्रतिभा उपाध्याय
Kavita Kosh से
छोड़ दिया मैंने तुझे झांसे में बड़े
जाना चाहता था मैं दुनिया के अंतिम छोर तक और
देखना चाहता था कि क्या मैं प्यार पा सकता हूँ
भरना चाहता था आगोश में प्यार से प्यार को I
तलाशा मैंने प्यार सभी गली कूचों में
फैलाए अपने हाथ हर दरवाजे के सामने और
भीख मांगी थोड़े से प्यार के लिये
लेकिन हँसते हुए दी गई मुझे मात्र तीव्र घृणा I
गलत था मैं हमेशा प्यार के विषय में , हमेशा प्यार के विषय में,
लेकिन नहीं मिला मुझे प्यार कभी
और मैं घर वापस आ गया , बीमार और उदास I
और तब सामने आ गईं तुम मुझसे मिलने
ओह ! तब तुम्हारी आँखों में जो तैर रहा था
वही मधुर था , वही था चिर वांछित प्यार II
हाइनरिष हाइने की कविता का मूल जर्मन से अनुवाद -- प्रतिभा उपाध्याय