भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी ये पहचान समझिए / सोनरूपा विशाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी ये पहचान समझिए
आँसू को मुस्कान समझिए

चीख़ें, टीसें,ज़ख्मी मंज़र
शहरों को शमशान समझिए

ग़म का चूल्हा,रोटी उनकी
ख़ूनी दस्तरख़ान समझिए

रस्मन है ये मातमपुर्सी
इसको मत एहसान समझिए

रोज़ चुभेंगे काँटे दिल में
फूलों से नुकसान समझिए