भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी रोशनी पर / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
स्ट्रीट लाइट!
अपनी रोशनी पर-
इतना मत अकड़;
क्योंकि , मैं उस नदी के गाँव से हूँ;
जो तुझे रोशन करने की खातिर-
कैद कर दी गयी-
सीमेंट की दीवारों में
और उसने उफ्फ तक नहीं की।