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अपनी सारी पीर मुझे दो / विमल राजस्थानी

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दे दो मुझको अपनी ज्वाला, अपनी सारी पीर मुझे दो
ले लो मुक्ताकाश, बद्ध पिंजरे का घायल कीर मुझे दो

मैंने अपने मन की सीमा-
को नभ का विस्तार दिया है
नीलकंठ बन सारे जग का-
विष, हँस-हँसकर पान किया है
दुख का दुस्सह भार मुझे दो, दे दो तप्त उसाँसें, टीसें
सुन्दर हँसती आँखें रख लो, गरम सलोना नीर मुझे दो

मोह-मोह लेते मेरा मन
दर्द पराया, पीर परायी
मुझको प्यारी-प्यारी लगती
करूणा की मह-मह अमरायी
खिल-खुलकर उल्लास-उमंगों का अक्षय मधुकोष सहेजो
दे दो मुझको अपनी चिन्ता, दुखता हृदय अधीर मुझे दो

स्नेह उड़ेलूँगा जीवन भर
उकसायी रक्खूँगा बाती
बड़े प्रेम से लिक्खो साथी !
तुम अपने जीवन की पाती
अक्षर-अक्षर को चमकाओ, पन्ने-पन्ने हृदय बिछाओ
लौ को जलने दो निशि-वासर, हठी, अधीर समीर मुझे दो
दीपक का आलोक मधुर है, शीतल है, सुखकर सुन्दर है
रवि-शशि की इन सहज, प्रखर छवि-किरणों की जंजीर मुझे दो