अपनी सृष्टि का पथ कर रखा है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अन्तिम रचना
अपनी सृष्टि का पथ कर रखा है आकीर्ण तुमने
विचित्र छलना जाल में,
है छलनामयी!
मिथ्या विश्वास का बिछाया जाल निपुण हाथ से
सरल जीवन में।
इसी प्रवंचना से महŸव को किया चिह्नित है;
छोड़ी नहीं उसके लिए कहीं गुप्त रात्रि भी।
तुम्हारा ज्योतिष्क उसे
जो पथ दिखाता है
उसकी अन्तरात्मा का पथ है वह,
चिर-स्वच्छ है वह,
सहज विश्वास से
उसे वह बनाये रखता है चिर-समुज्जवल।
बाहर भले ही हो कुटिल, अन्तरात्मा में है ऋजु,
इसी में उसका गौरव है।
लोग कहते उसे ‘विडम्बित’ है।
सत्य को वह पाता है
अपने स्वच्छ प्रकाश में
प्रकाश-धौत ज्ञान में।
कोई भी न कर सकता उसे प्रवश्चित,
शेष पुरस्कार ले जाता वह
अपने भण्डार में।
अनायास ही सह लेता जो जगत की छलनाएँ
पाता वह तुम्हारे हाथ
शान्ति का अक्षय अधिकार है।
वास भवन: जोड़ासाँको कलकत्ता
प्रातःकाल साढ़े नौ बजे: बुधवार
30 जुलाई, 1941: 14 श्रावण 1998
(इसी दिन (30 जुलाई) गुरुदेव के शरीर में अóोपचार हुआ, और उसके दसवें दिन श्रावणी पूर्णिमा, 1998 (6 अगस्त, 1941) को उनका स्वर्गवास हो गया)