मैं अपने खोए जंगल में घुसता हूं
जहां दिखाई देती हैं कुछ बस्तियां
जिन्हें चिन्ह्ति नहीं किया जा सकता
उनमें अंधेरे और उजाले के लिए
कुछ नहीं है
वे भरी हैं ऊब और काई से
रंग और परदों से
मैं कुछ नहीं कर सकता उनके लिए
जिन्हें बचाया जाना ज़रुरी नहीं था
मैं हूं अपने तरीक़ों में
पुरातन कोई धातु, चित्र या प्रतीक
मैं अपने आदिम रूप में प्रवेश करते हुए
रखता हूं आने वाले कल के लिए ख़ुद को
मैं भरा हुआ हूं आख़िर तक और रिक्त भी
मैं जिस व्यक्ति की हार में रह गया
और जो दूर तलक दिखाई नहीं देते
वह बच्चा और बूढ़ा, आखिरी छोर पर खड़े
देते हैं दस्तक कि
अब तुम्हें दरवाजे़ खोलना चाहिए.....
मैं सरक कर एक पत्थर हटाता हूं
मुझे सुनाई पड़ती है गहरे कुंओं से कुछ आवाजें
जैसे कुछ मुझ पर चोट करता हुआ
मैं आदिम रूप में चमकता एक पत्थर
मुझे अपने लिए गवाही नहीं चाहिए
मैं कहता हूं-
मैं हूं उन सब में जहां से मुझे हटाया गया
मैं लकड़ी में हूं आरियों से कटता
और नए आकार लेता
मुझे उन गलियों में देखो
जहां तुमने छोड दिए
नमक, रोटी के टुकडे, छिलके, दूध और गंदा पानी
मैं गला नहीं
अब भी वही चमक
और आकार लेने की क्षमता से भरा हूं
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मैं ईश्वर के गंदे नाले में बहाया
एक फुनगा, तिनका या रक्त की एक बूंद नहीं
जो कहीं नहीं प हूँचा
जिसने सिर्फ़ खोया और खोया
या मैं वह नहीं जो होना चाहता था
या जिसे मार दिया गया
मैं यह हूं स्वयं को रखता हुआ तुम्हारे सामने
मैं एक आदिम शब्द
मिथकों और अवास्तविक दुनिया से दूर
मैं अपने ढहने और मारे जाने से
बिलकुल भी ख़ौफज़दा नहीं हूं
मैं लाया गया या छोड़ा गया हो सकता हूं
त्यागा गया या सहलाया गया हो सकता हूं
लेकिन मैंने रोपी हैं जड़ें
जब कोई पेड़ इस कदर बड़ा हो गया कि
मेरे हाथ प हूँचते नहीं अपने घुटनों तक
काटा है कुल्हाडी से
और यही कहता हुआ आता हूं कि
जीवन तर्क हीन नहीं हो सकता
जारी रखो.....
हम वैसे भी नहीं जी सकते
बचाव की मुद्रा में
क्योंकि जो हथियार हमें मारता है
वह तलवार या भाला नहीं
हमें घायल वजूद को देखना चाहिए
जिसने विचारों की पटरी पर दौड़ लगाई
जो मारा नहीं जा सका
अंततः जो जंगल हम छोडना नहीं चाहते
वे साथ रहेंगे
वे फलते जाएंगे
मैं वह आदिम पशु, वह आदिम गवाह हूं
जो बार-बार मारा जाता है
मैं उन जलती बस्तियों से नहीं लौट पाया
जिसने पराजित अक्षरों में कहा
मेरी मृत्यु इच्छाओं के लिए नहीं
ख़ुद को पहचानने की अक्षमता से हुई
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अंततः हम बाहर नहीं आ सकते
हमारे युद्ध पराजित योद्धा की तरह हैं
कोई वक़्त ऐसा नहीं रहा
जब चोट नहीं प हूँचाई
उफ! यह हमारा घायल शिश्न
उठता है हिंसा की तरफ