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अपने-अपने दर्द / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
अपने-अपने दर्द कह रहे,
अपने-अपने घर में लोग,
सीने की धड़कन टटोलते
अपनी झुकी कमर में लोग।
बाहर बिजली का खम्भा है
खम्भे में खतरा है,
बूढ़े को झटके लगने से
बच्चा डरा-डरा है,
खम्भों से बचकर चलते हैं
चढ़ती हुई उमर के लोग।
दीवारों से सटे रंग हैं
रंगों पर आँखें हैं,
सब के सिर पर किसी पेड़ की
झुकी हुई शाखे हैं,
छायाओं से सिर सहलाते
नीचे उतर-उतर के लोग।
ऊपर जाने को ले आनी-
है, जेबों में सीढ़ी,
बिना जेब की फटी कमीजें-
पहन घूमती पीढ़ी,
नंगे पाँवों नाच रहे
काँटों पर जादूगर-से लोग।