अपने-अपने हिण्डोले में / श्रीधर करुणानिधि
कहते हैं कि वह आ रहा है
तब जाना क्यों दिख रहा है हर ओर
क्यों लौट रहा है अपार जनसमुदाय
निराशा और हताशा की धूल उड़ता हुआ
जो जाने कब से खड़ा था
उसकी अगवानी में
अपने मैले-कुचैले कपड़ों में
साफ़ बेदाग दिल के साथ...
औरतें भी थीं उस भीड़ में
अपने दुधमुँहे बच्चों के साथ
फूफी, काकी, दादी सब खड़ी थीं
इस विशाल हुजूम में
सभी भागी-भागी आईं थीं जैसे-तैसे
अधनंगे अधछूटे कपड़ों में
कामकाज के औज़ार हाथों में थामे
अभी तो नल से गिरने वाला पानी
हाण्डों में भरा भी नहीं गया था
हर्जा कर आए थे सब अपना काम-काज
और खड़े थे बेचैन
अपना लाल-लाल धड़कता हुआ दिल
हाथों में रखकर
किसी ने जब कहा कि
‘वह आ गया है’ तो
पैर उचका-उचका के देखने लगी भीड़
लोगों ने बच्चों को कन्धों पर उठा लिया...
वह उतरा
सतरंगे हिण्डोले से
‘बहार भी उसके साथ है’ लोग चिल्लाए
‘अब देखना हर तरफ बिखरेंगे रँग ही रँग’
कुछ और लोग चिल्लाए
उसने देखा भी नहीं
हाथों में रखे लाल-लाल धड़कते दिल को
घुस गया वह सुन्दर महल में बहार के साथ
एक कठोर किलेबन्दी में चली गई बहार
फिर कहाँ खिले ग़ुल इन सबकी बस्ती में
सब लौट रहे हैं उदास
और खोज रहे हैं निराशा में ही
अपनी-अपनी बहार
अपने-अपने बसन्त ।