अपने अधिकार के आजू-बाजू दम तोड़ती मैं / विपिन चौधरी
अपने अधिकार में जन्म लेने की बेचैन घड़ी के दरमियान
आँखें खोलते ही मैंने देखा
अपनी कलाइयों में किसी और नाम की रंगबिरंगी चूड़ियां
पांव में किसी और नाम के बिछुए
गले में मंगलसूत्र
टीका, लिपस्टिक
और बदन पर किसी और आँखों की पसंदीदा साड़ी
जुबान पर किसी और के नाम का मन्त्र जाप
किसी और के सौभाग्य के लिए अखंड पूजा-परिक्रमा
मन-मस्तिस्क में विचार भी किसी और के
बिच्छू बन्टी की तरह किसी और के कच्चे आंगन में रोप दी गयी मैं
और रबी की फसल की तरह भरे पाले में काट दी गयी हूँ
मेरी नहर में पानी कम होने पर भी मुझे सींच दिया जाता है
जबरन एक अनचाही खड़ी-कंटीली फसल रोपने के लिए
अपने अधिकार के भीतर ही मैं दम तोड़ चुकी हूँ
कब्र के सिरहाने भी मेरा नाम आधा-अधूरा लिखा था
और कब्र के हत्थे पर उग आये दो फूलों को
तोड़ने के लिए भी कोई और ही तैयार दिखा