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अपने अन्जाम का कब किसको पता होता है / सिराज फ़ैसल ख़ान

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अपने अन्जाम का कब किसको पता होता है
मैं जहाँ हाथ लगाता हूँ बुरा होता है

मेरी आवारगी भी कम नहीँ इबादत से
जब मैँ पी लेता हूँ होटों पे ख़ुदा होता है

उम्र भर साथ निभाएँगे सभी कहते हैँ
ऐसा दिखलाओ हक़ीकत मेँ कहाँ होता है

बिना मतलब किसी से अब कोई नहीं मिलता
हर मुलाक़ात में मक़सद भी छुपा होता है

आपके आने की आहट-सी मुझे मिलती है
देखता हूँ तो वहाँ सिर्फ़ धुआँ होता है

ख़्वाब मेँ रोज़ मैं बाहों में उसे भरता हूँ
आँख खुलती है तो वो मुझसे जुदा होता है

गर वो एहसान जताए 'सिराज' कह देना
लूट ले मुझको अगर तेरा भला होता है