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अपने अहसास जगाता है शहर रात गये / प्रफुल्ल कुमार परवेज़


अपने अहसास जगाता है शहर रात गये
ख़ुद से मिलने को तरसता है शहर रात गये

दिन निकलते ही नक़ाबों को पहन लेता है
आइना ख़ुद को दिखाता है शहर रात गये

कौन करता है यहाँ अपना तसव्वुर दिन भर
ख़ुद को आवाज़ लगाता है शहर रात गये

एक मुस्कान है चेहरे पे ज़रूरी दिन भर
और रह-रह के बिलखता है शहर रात गये

कौन रौंदा गया कुचला गया चलते-चलते
गाम-दर-गाम गिनाता है शहर रात गये

अपनी रूहों में उतरने की तमना ले कर
जाम-दर-जाम उठाता है शहर रात गये

गाँव में भी न पसर जाए हवा शहरों की
किस क़दर हमको डराता है शहर रात गये
 
जब गया शहर जो परवेज़ तो अहसास हुआ
प्यार से मिलता-मिलाता है शहर रात गये