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अपने आप और तेरे ‘तू’ तक पहुँचने का यत्न / विशाल

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एक रात का अन्तर पार करके
तूने सवेर जीत ली
और मैं हार गया
अपने सारे सूरज एक ही रात में

वैसे मैंने भी कभी नहीं चाहा था
कि अंधियारी गुफाएँ
मेरी आदत बनें
पर जब मेरे लिए
सब उजाले वर्जित हो गए
तो मैंने एक जुगनू का
दावेदार बनना चाहा था

मेरे अन्दर सरकने लगी
ऐसे ही एक जलावतन ॠतु
और मैं कुचले हुए गुलाब जेबों में रखकर
जामुनी ॠतु के भरम पालता रहा
मैं बात को कहीं से भी शुरू नहीं करना चाहता
क्योंकि बात
कहीं भी ख़त्म नहीं होगी
पर तू मेरे पास-पास ही रहना

भीड़ में गुम हो जाऊंगा कभी
डूब जाऊंगा किसी किनारे पर ही
एकाकीपन से भी भर उठूंगा
होऊंगा तन्हा कमरे से ज़्यादा
चीख़ से ज़्यादा ख़ामोश भी हो सकता हूँ
मेरे पैरों में आवारगी ही नहीं
तलाश भी है उन बादबानों की
जहाँ कहीं जहाज़ डूबते हैं

बस, तू मेरे पास-पास ही रहना
वैसे ही
जैसे रात कहती है
सवेरा बुलाता है
और मुझे उतना-भर रख लेना
कि बाक़ी कुछ न बचे।

मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव