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अपने ग़म का बयान करना है / हरेराम समीप

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अपने ग़म का बयान करना है
दर्द को आसमान करना है

फैसला साहिबान करना है
जंग के दरमियान करना है

ख्वाब का और इस हकीकत का
ज़िन्दगी से मिलान करना है

दरअसल शायरी का मकसद ही
वक्त को सावधान करना है

ये इनामात किसलिए आखिर
क्या मुझे बेजुबान करना है

सर कलम होता है तो होने दे
हमने सच का बयान करना है