भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने दरपन से लड़ गया कोई / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने दरपन से लड़ गया कोई
सीधे शूली पे चढ़ गया कोई।

अपने भीतर की आग में जलकर
बसते-बसते उजड़ गया कोई।

जिंदा होता तो ये नहीं होता
लाश जैसे अकड़ गया कोई।

इस अदालत में बस यही होता
जुर्म किसका, पकड़ गया कोई।

मेरे दस्ते दुआ तो ऊपर थे
जब गिरेबाँ पे बढ़ गया कोई।

अपना वो घर, वो गाँव याद आया
जब वतन से बिछड़ गया कोई।