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अपने दामन में काँटे भरें जातु ऐं / सालिम शुजा अन्सारी

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अपने दामन में काँटे भरें जातु ऐं
लोग जीवे की खातिर मरें जातु ऐं....

जो खुदा सूँ सबन कूँ डरावत रहे....
अपनी परछाईं'अन सूँ डरें जातु ऐं....

पीर पक कें हरे ह्वै गए जो जखम
बे जखम ही दरद कूँ हरें जातु ऐं...

हम नें तोहरे नगर की डगर तज दई
हर अमानत हू बापस धरें जातु ऐं...

भूल कें हू हमें बिस्व भूलै नहीं
काम कछ ऐसौ हम हू करें जातु ऐं..

कछ निसाने निसाने पै 'सालिम' लगे
कछ निसाने छटक कें परें जातु ऐं...