अपने दिल से तेरी यादों को मिटाऊं कैसे / सिया सचदेव
अपने दिल से तेरी यादों को मिटाऊं कैसे
अपनी आँखों को नए ख्वाब दिखाऊ कैसे
कागज़ी फूलों को कमरे में सजाऊ कैसे
मैं बनावट के उसूलो से निभाऊ कैसे
मेरे एहसास की तन्हाई का जिद्दी बच्चा
सो गया हैं तो उसे हाथ लगाऊं कैसे
मैं भी कर सकती थी उस जैसी खताए सारी
अपनी नज़रों से मगर खुद को गिराऊ कैसे
नफरते घर को कभी घर नहीं रहने देती
अपने बच्चो को यहीं बात बताऊ कैसे ?
गैर दुश्मन हों तो मैं उनको मिला दूं लेकिन
भाई दुश्मन हों तो फिर उनको मिलाऊं कैसे ?
उम्र भर तुझ से मेरे दोस्त मोहब्बत की है
दिल में नफरत मैं तेरे वास्ते लाऊं कैसे
कोई आंसू न सितारा,न कोई चिंगारी
जुल्मते शब् में कोई कोई दीप जलाऊ कैसे
तू ही बतला दे मुझे रूठ के जाने वाले
दिल पे गुजरी जो क़यामत वह सुनाऊं कैसे
दिल की दुनिया तो हैं पथरीली ज़मीं की मानिंद
सोचती हूँ की कोई फूल उगाऊ कैसे
जिसको पाने की तमन्ना में गवायाँ खुद को
ए सिया मैं उसे पाऊ भी तो पाऊ कैसे ..