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अपने दुखड़े - 1 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
Kavita Kosh से
बात अपनी किसे बताएँगे।
हाल घर का किसे सुनाएँगे।1।
जो सके सुन न आप दुख मेरा।
क्यों कलेजा निकाल पाएँगे।2।
जब कि हम आँख देख लेवेंगे।
लोग आँखें न क्यों दिखाएँगे।3।
जब गयी आँख तब नहीं क्यों हम।
आँख की पुतलियाँ गँवाएँगे।4।
बे तरह जब कि आज हैं बिगड़े।
तब बड़ों को न क्यों बनाएँगे।5।
काटना कान है सपूतों का।
नाक अपनी न क्यों कटाएँगे।6।
पड़ गयी मार, पर मिले टुकड़े।
पूँछ कैसे नहीं हिलाएँगे।7।
क्यों दिखाएँगे नीच को नीचा।
आँख ऊँची अगर उठाएँगे।8।
हैं अगर बे हिसाब मुँह बाते।
किस तरह तो न मुँह की खाएँगे।9।
जाति को तो जिला नहीं सकते।
जान पर खेल जो न जाएँगे।10।