अपने दोस्तों के बीच ईश्वर-5 / पवन करण
क्या-क्या नहीं हो रहा मेरे नाम पर
सब झूठ बोल रहे हैं कोई नहीं कहता
जाओ भाइयो अपना काम देखो जाकर
सब तुम्हें बेवकूफ बना रहे हैं
तुम्हें देने के लिये ईश्वर के पास,
कुछ भी नहीं, हमारे पास भी नहीं
कोई नहीं कहता सब बराबर हैं
मानने वालों की संख्या कम होने से
कोई पहचान छोटी नहीं हो जाती, फिर
ईश्वर की ज़रूरत क्या हैं, ईश्वर के बिना
रहा नहीं जाता तुमसे जैसे
माँ ने नहीं, ईश्वर ने पैदा किया हो
किस कदर पैसा आता है मेरे नाम
सब का सब चोरी से कमाया,
तुम सबका गला काटकर बनाया
कोई नहीं पूछता मेरे नाम पर जो
हुंडिया चढ़ा रहे हैं लोग वो उन्होंने
कैसे कमाई हैं, काली कमाई न चढ़े
तो जिन जगहों में मैं रहता हूँ वहाँ
बिजली का बिल भी न भर पाए
चढ़ रही है मुझे, ज़्यादा बोल रहा हूँ
लुढ़क जाऊँ तो मुझे जहाँ से आया हूँ
वहीं छोड़ आना, ईश्वर होने के बाद
अब मैं किसी काम का नहीं, नहीं गया
तो मुझे यहाँ-वहाँ ढोते फिरोगे
अब मैं ईश्वर होने से पहले जो था
वह नहीं हो सकता, कुछ ईश्वरों ने
कोशिश की भी वापस दुनिया में
लौटने की तो नहीं हो सके सफल,
एक बार ईश्वर हो गये तो हो गये
अब जिंदगी भर ईश्वर होकर जियो
ईश्वर होकर मर तो सकते नहीं
इन बेवकूफों को क्या हुआ चाँद पर
राकेट भेजते हैं और उसकी प्रतिकृति
मेरे चरणों में चढ़ाने चले आते हैं
उनके काम से मेरा कुछ लेना नही
तब भी इसका श्रेय मेरी झोली में
एक यही तो रहा जो लगातार मुझे
चुनौती देता हुआ बढ़ता रहा आगे
ये महाशय उसे भी मेरे क़दमों में
डालने पर उतारू हैं, जैसे यान में
हर बार पलीता मैं ही लगाता होऊँ
मुझे चुनौती देना पसंद है, जो मुझ
निष्क्रिय को चुनौती देता है, वह
आगे बढ़ता है, काश कि मैं खुद को
चुनौती दे पाता, इस ईश्वर होने से
अपना पीछा छुड़ाकर भाग पाता
मर्जी तो यह है मेरी सब खूब काम करें
जमकर दारू पिएँ, दाल-रोटी खाएँ,
मिल-जुल कर रहें, मेरी जगह किताबों को
समय दें, मुझे जरा भी घास न डालें न ही
अपना करा-धरा मेरे नाम पर न थोपें,
मुझे दिनों से पीने को मिली नहीं,
तो ज़्यादा पी ली है मैने मगर यह सच है कि
मेरा ईश्वर होना किसी काम का नहीं
यह मुझसे बेहतर कौन जानता होगा
मेहनत से कमाने-खाने वाले, दोस्तो !
खुद पर भरोसा करने वाले, साथियो !
मुझे कतई भाव न देने वाले, मनुष्यो !
मैं सच कह रहा हूँ, मुझ पर यकीन करो।