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अपने प्रिय दोस्त की मृत्यु पर / मोना गुलाटी

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एक

मेरे दोस्त : तुम वह सम्वाद हो
जो कालातीत होने पर भी हाथ
ऊपर नहीं उठा देता :
तुम मुझे बाँधे हुए पाश थे जो दिक्
और काल के आह्वान को नकारता है !

दोस्त :
मृत्यु को मुग्धावस्था में व्यतिक्रमित करते हुए
तुम मेरे आग़ोश में आ गए हो
और संकल्पबद्ध होकर
इतिहास को रौंदने लगे हो :
तुम्हारी उँगलियों के पोरों का
स्पर्श सहसा धमनियों में दौड़ने लगा है :
जीवन में
तुम मेरे निकट
इतना अधिक नहीं आए कि तुम्हारी
पहचान के चिह्न ढूँढ़ लिए जाते !

मृत्यु तुम्हें मेरे
पास छोड़ गई है और
तुम अपनी कभी भी न समाप्त
होने वाली मुस्कुराहट
आँखों में बाँधे मुझे
तराश रहे हो !

विनम्र पिघलाव मुझे बेसुध कर रहा है :
और अनिर्वचनीय संलाप की कड़ी
फिर से जुड़ने लगी है :
मौत का नाम इतना
आत्मीय हो सकता है :
यह मुझे
चकाचौंध कर रहा है :
मौत की ओट कर तुमने
मुझे उस सिद्धि का अर्थ समझा दिया है
जहाँ पहुँच कर व्यक्ति निर्विकल्प हो जाता है :
राग-द्वेष से इतर
और अपने भीतर ही भीतर
आह्लाद बनकर
प्रवाहित होने लगता है :

तुमने उस प्रदेश की यात्रा से
मुझे इंगित दिया
है अपने होने का :
भराव और उठान से मेरी
छातियाँ कसमसाने लगी हैं : मुझे भी
बुलाने लगा है
देहातीत होने का सुख :
और तुम्हारी मौत
मुझे कर रही है उन्मादित :
आप्लावित !

दो

अब चेहरा नहीं :
हवा, डूबती हुई रौशनी और गहराती हुई
दूब है :
सूरज के डूबने के साथ उदासी को जोड़ देने में
कोई तुक नहीं है।

सूरज कभी
डूब सकता ही नहीं केवल
आँखों से ओझल होने का
खेल खेलता रहता है
इस खेल में
हिस्सा बाँटने तुम
मौत का नाम लेकर
दूसरे प्रदेश में चले गए हो
मेरी पहुँच
वहाँ कभी भी हो सकती है
मुक्ति मेरी मुट्ठी में बँधी हवा का
नाम है :
मेरे नासापुटों में भरती हुई गन्ध है
वह कभी भी किसी की व्यक्तिगत
मर्यादा या सम्पत्ति नहीं हो सकती ।
यहाँ तक
मौत की भी नहीं ।

वस्तुत : आदमी की ख़ालिस कमी एक ही है :
आदमी के सन्ताप में छिपा रहस्य
बौराता हुआ मुँह
और रीढ़ की हड्डी को कमज़ोर करता हुआ सम्वाद :
एक ही है
बकवाद : बकवाद : बकवाद :
और बकवाद : और बार-बार उसे दुहराना
जिसे वह सुनना भी नहीं चाहता :
नहीं चाहता देखना, और
सूँघना !

आर-पार देखने की जो उमंग आए
उसे छूना और
उसके साथ ऊपर तक उठ जाने के गुप्त संलाप
मैंने
सुन लिए हैं :
मैंने जान लिया है
कि जहाँ तक
पाँव ले जाना चाहें
चलो !