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अपने लोगों के लिए / मार्गरेट वाकर / राजेश चन्द्र

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अपने उन लोगों के लिए
जो गाते हैं हर कहीं अपनी दासता के गीत निरन्तर
अपने शोकगीत और पारम्परिक गीत
अपने विषाद गीत और उत्सव-गीत,
जो दोहराते आ रहे हैं प्रार्थना के गीत हर रात
किसी अज्ञात ईश्वर के प्रति,
घुटनों पर बैठकर आर्त्त भाव से
किसी अदृश्य शक्ति के सामने;

अपने उन लोगों के लिए
जो देते आ रहे हैं उधार अपनी सामर्थ्य वर्षों से,
बीते वर्षों और हाल के वर्षों और सम्भावित वर्षों को भी,
कपड़े धोते, इस्तरी करते, खाना पकाते, झाड़ू-पोंछा करते
सिलाई मरम्मत करते, फावड़ा चलाते,
जुताई - खुदाई - रोपनी - छँटाई करते, पैबन्द लगाते,
बोझा खींचते हुए भी, जो न कमा पाते न चैन पाते हैं
न जानते और न ही कुछ समझ पाते हैं;

बचपन में अलाबामा की
मिट्टी और धूल और रेत के अपने जोड़ीदारों के लिए
आँगन के खेल-कूद, बपतिस्मा और धर्मोपदेश और चिकित्सक
और जेल और सैनिक और स्कूल और ममा और खाना
और नाट्यशाला और संगीत समारोह और दूकान और बाल
और मिस चूम्बी एण्ड कम्पनी के लिए;

तनाव और कौतूहल से भरे उन वर्षों के लिए
जब हम दाख़िल हुए स्कूल में पढ़ाई के लिए
क्योंकि कारणों और उत्तरों और कौन से लोग
और कौन सी जगह और कौन से दिन को
जानने के लिए, उन कड़वे दिनों को याद करते हुए
जब हमें पहली बार मालूम हुआ कि हम
अश्वेत और ग़रीब और तुच्छ और भिन्न हैं
और कोई भी हमारी परवाह नहीं करता
और किसी को हम पर अचम्भा नहीं होता
और कोई भी समझता ही नहीं हमें;

उन लड़कों और लड़कियों के लिए
जो इन सबके बावज़ूद भी पलते रहे, बढ़ते रहे
आदमी और औरत बनने के लिए
ताकि हंसें और नाचें और गाएँ और खेलें और
कर सकें सेवन शराब और धर्म और सफलता का,
कर सकें शादी अपने जोड़ीदारों से और
पैदा करें बच्चे और मर जाएँ एक दिन
उपभोग और एनीमिया और लिंचिंग से;

अपने उन लोगों के लिए जो कसमसाते हैं
भीड़भाड़ में शिकागों की सड़कों पर और
लेनॉक्स एवेन्यू में और न्यू ओरलीन्स की
परकोटेदार गलियों में, उन गुमशुदा
वंचित बेदख़ल और मगन लोगों के लिए
जिनसे भरे हैं शराबख़ाने और चायख़ाने और
अन्य लोग जो मोहताज़ हैं रोटी और जूतों
और दूध और ज़मीन के टुकड़े और
पैसे और हर उस चीज़ के लिए जिसे कहा जा सके अपना;

अपने उन लोगों के लिए,
जो बाँटते फिरते हैं ख़ुशियाँ बेपरवाह होकर,
नष्ट कर देते हैं अपना समय क़ाहिली में,
सोते हैं भूखे-प्यासे, बोझा ढोते, चिल्लाते हैं,
पीते हैं शराब नाउम्मीदी में,
जो बन्धे हुए, जकड़े और उलझे हैं हमारे ही बीच के
उन अदृश्य मनुष्यों की बेड़ियों में
हमारे ही कन्धों पर होकर सवार जो
बनते हैं सर्वज्ञानी और हंसते हैं;

अपने उन लोगों के लिए जो
करते हैं गलतियाँ और टटोलते
और तड़फड़ाते हैं अन्धेरों में
गिरजाघरों और स्कूलों और क्लबों
और समितियों, संस्थाओं और परिषदों
और सभाओं और सम्मेलनों के,
जो हैं दुखी और क्षुब्ध और ठगी के शिकार
और जिन्हें निगल लिया है धनपशुओं
और प्रभुता के भुक्खड़ जोंकों ने,
जिन्हें लूटा जा रहा है
राज्य के हाथों प्रत्यक्ष बल-प्रयोग से
और छला जा रहा है
झूठे भविष्यवक्ताओं और धार्मिक मतवादियों द्वारा;

अपने उन लोगों के लिए
जो जुटे हैं, इकट्ठा हैं, प्रयासरत हैं
एक ऐसे बेहतर मार्ग के निर्माण के लिए
जो कि बाहर निकाल सकें उन्हें
भ्रमजाल से, पाखण्ड और ग़लतफ़हमी से,
जो प्रयासरत हैं एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए
जो जगह दे सके तमाम लोगों, तमाम शक़्लों
तमाम आदमों और ईवों
और उनकी बेहिसाब पीढ़ियों को भी;

एक नई पृथ्वी का उदय होने दो ।
पैदा होने दो एक और दुनिया को ।
एक रक्तिम शान्ति को
अंकित हो जाने दो आसमान पर ।
साहस से भरी अगली पीढ़ी को आने दो आगे,
होने दो सम्वर्द्धन एक ऐसी आज़ादी का
भरा हो अनुराग जिसमें जन-जन के लिए ।
राहत से भरी हुई सुन्दरता को
और उस शक्ति को जो निर्णयकारी हो
हो जाने दो स्पन्दित हमारी आत्माओं में
और ख़ून में हमारे ।

आओ कि अब लिखे जाएँ गीत प्रयाण के,
जिनमें तिरोहित हो जाएँ शोक के गीत ।
अब हो जाना चाहिए उद्भव तत्क्षण
इंसानों की एक प्रजाति का
और सम्भाल लेना चाहिए ज़िम्मा शासन का उसे ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र