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अपने सच में झूठ की मिक्दार थोड़ी कम रही / राजेश रेड्डी
Kavita Kosh से
अपने सच में झूठ की मिक्दार थोड़ी कम रही ।
कितनी कोशिश की, मगर, हर बार थोड़ी कम रही ।
कुछ अना भी बिकने को तैयार थोड़ी कम रही,
और कुछ दीनार की झनकार थोड़ी कम रही ।
ज़िन्दगी ! तेरे क़दम भी हर बुलन्दी चूमती,
तू ही झुकने के लिए तैयार थोड़ी कम रही ।
सुनते आए हैं कि पानी से भी कट जाते हैं संग,
शायद अपने आँसुओं की धार थोड़ी कम रही ।
या तो इस दुनिया के मनवाने में कोई बात थी,
या हमारी नीयत-ए-इनकार थोड़ी कम रही ।
रंग और ख़ुशबू का जादू अबके पहले सा न था,
मौसम-ए-गुल में बहार इस बार थोड़ी कम रही ।
आज दिल को अक़्ल ने जल्दी ही राज़ी कर लिया
रोज़ से कुछ आज की तकरार थोड़ी कम रही ।
लोग सुन कर दास्ताँ चुप रह गए, रोए नहीं,
शायद अपनी शिद्दत-ए-इज़हार थोड़ी कम रही ।