भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने समय में / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
यह एक दौड़ है अंधी दौड़!
रैफ़री न कोई।
न कोई पाबन्दी न लिहाज़ न मुरव्वत;
हर एक है अपने बूते पर--
कोनो-अतरों में अदृश्य आले हैं
तस्वीरें खिंचती हैं दूर-दूर जाती हैं
दम फूलता है तो होती है गुंजार
कोई लड़खड़ाए तो फूटती है किलकार
यह एक दौड़ है, अंधी दौड़
दौड़ता है कौन-कौन साथ यह पता नहीं
दौड़ना कहाँ तक है यह भी पता नहीं