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अपने सूखे होंठों के पास लाता हूँ हरापन / ओसिप मंदेलश्ताम
Kavita Kosh से
अपने सूखे होंठों के पास लाता हूँ हरापन
और हरी-हरी पत्तियों की खाता हूँ कसम
महसूस करता हूँ उस माँ-धरती का सौंधापन
जिसने दिया हेमपुष्पी और बलूत को जनम
देखो, कैसे बात मैं अपनी जड़ों की मानकर
हो रहा हूँ ताकतवर और बेहद मज़बूत
देखो, कितना अच्छा है, माँ-धरती का ध्यान कर
मृत्युदेव यमराज के साथ खेल रहा हूँ द्यूत
वे सब मेंढक हैं जैसे, पारे की चमकीली गोलियाँ
टर्र-टर्र टर्रा रहे भयानक, बोलें अपनी बोलियाँ
छड़ी उनकी लगती है मुझे, हरे पेड़ की डगाल
और भाप-सा उड़ जाता है, मन का सब मलाल
30 अप्रैल 1937, वरोनिझ़