भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने ही फासले / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
सपनों के पैताने अमलतास
बिस्तर पर सिरहाने च्यवनप्राश!
तन-मन की दूरी को
जीवनभर नापते
घाव हुए पैर रिसे
हाँफते-हाँफते!
सपनों में मेघदूत आवारे
जीवन में खिड़की भर हरी घास!
दूर-दूर पहुँच गए
मंजिल पर काफिले,
मिटे नहीं अपने से
अपने ही फासले!
सपनों में इन्द्रधनुष, कार्निवाल
कालिज में हिन्दी की वही क्लास!