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अपनों की याद में-2 / पुष्पिता
Kavita Kosh से
बेआबरू मौसमों की तरह
पड़े हैं सपने
आँखों के कोने में
एकाकी परदेश प्रवास में
सूरज की सेंक में
सुलगते हैं स्वप्न
जिंदगी फिर भी
रचती रहती है नए नए ख्वाब
विदेशी मित्रों की तरह।
विदेश में
याद आती हैं सहमी हुई स्मृतियाँ
चाँदनी से भी झरता रहता है अँधेरा
पूर्णिमा की पूरी रात
अकेले में
'उदास' शब्द के
गहरे अर्थ की तरह।
इच्छाएँ माँगती रहीं
नए पत्ते
जहाँ साँस ले सके इच्छाएँ
और उनसे जन्म ले सकें
अन्य नवीनतम इच्छाएँ।
इच्छाओं के साँचे में
समा जाती हैं जब भी इच्छाएँ
जिंदगी हो जाती है जिंदगी के करीब
जैसे कागज के आगोश में
होती है कलम
कुछ कहने को बेक़रार
कलम की स्याही से अधिक
देह की स्याही से लिखने को बेचैन।