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अपनो देश / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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करम धरम भूमि मारत के देशवा हों
घर घर आनन्द बधावा हो सांवलिया॥
मलय पवन बहैय डाल पात दोलैय रामा।
हरी भरी धरती लखावैय हो सांवलिया॥1॥
उमड़ी घुमड़ी आवैय कारी कारी बदरी हो।
मीठ मीठ जल बरमाबैय हो सांवलिया॥
रिमझिम रिमझिम बूंदिया बरसैय रामा।
निहुरी निहुरी धनमा रोपैय हो सांवलिया॥2॥
गोरी गोरी कारी कारी सांवलिया रोपनियां हो।
कुहूकैय कोयल कंठ गीत हो सांवलिया॥
बरसा, शरद काल पतझड़, बसंत रन्मा।
घामुओं बनास मन मोहैये हो सांवलिया॥3॥
फल से भरल डाल झूकि झूकि आबैय रामा।
हल्की पवन झकझोरैय हो सांवलिया॥
आमुओं जमुनमां पै कुहूकैय कोइलिया हो।
ठप ठप चुबैय महुआ फूल हो सांवलिया॥4॥
गेहुंबा के शीशवा से भरल कियरिया हो।
महुली महूली उमराबैय हो सांवलिया॥
कमल, गुलाब फूलैय फूलैय जूही बेलिया हो।
मह मह करैय झौंराचड़ैय हो सांवलिया॥5॥
सरसों के पात पात तितली फुदकैय रामा।
पीयर फूल मीठवा के छारैय हो सांवलिया॥
गंगा रे जमुनमां के निरमल पनियां हो।
पीवत नहात रोग नासैय हो सांवलिया॥6॥
मयुर पपीहा कोयल बोलैय सुग्गा मैनमा हो।
जातहुं पथिक बिलमाबैय हो सांवलिया॥