अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस / सिलसिला / रणजीत दुधु
हमरा पर जेतना हँसना हो ला हँस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
चकरवरती दशरथ के छुट गेल परान
भगवान महादेव के भंग होल धियान
नारद बरम्हा के तोड़लका अभिमान
बाप के गद्दी से उतार देलक कंस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
गलती एतनइ कि हम बोल के बतावऽ ही
तोरा अर नियर न´ बात के छिपावऽ ही
सबके एक्के दुरगति होते पावऽ ही
करेजवा चढ़ सबके दे हे दमस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
एक्कोगे माउग न´ हे जे मरद से खुश
कइसनो बढ़ियाँ काम कर आवऽ दे तो दुस
जो तनिको बोलवा उ तुरत जइतो रूस
बढ़ियाँ जीवन जीना कर देतो उदबस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
कहे हे बेटवा जीवन में की कइला
कतना कमइला आउ कतना बनइला
सउँसे जिनगी बेमतलवे गमइला
पूरा करते रहला खाली अपन हवस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
जलमावल पोसल सब गेलो बेकार
ओकरा पर न´ हको तोहर अधिकार
रहना हो गर तो बनके रहऽ बेगार
चुपचाप देखते रहऽ तों मत करऽ कसमस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
नउकरी करऽ हकी हम उनकी दी दास
रोजे खिलवऽ ही गाय आउ गढ़ ही घास
हमर उनके से पूरा होल सभे आश
आज्ञापालन में न´ कर ही टसमस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।
काम न´ करे हे हमर एको गो विचार
मरे के धमकी से हो जा ही लाचार
की की कहत सभे समाज आउ परिवार
मनाबूँ मनउती कइसउँ रहथ रसबस
अपन बेटवा-मउगी भिर सब हे बेबस।