अपलम जी, चपलम जी दिल्ली आए हैं / प्रकाश मनु
अपलम जी, चपलम जी दिल्ली आए हैं,
अपलम जी, चपलम जी क्यों घबराए हैं?
अपलम जी, चपलम जी दिल्ली देखेंगे,
दिल्ली की ढिल्ली सी किल्ली देखेंगे।
बोले है ऊँची-ऊँची सी कुतुबमीनार,
दिल्ली में सुनते हैं, है एक चोर बाजार।
देखेंगे इंडिया गेट पर खेल-तमाशा,
ढम-ढम बजता ढोल, बजा कैसा ताशा!
लाल किले की झलर-मलर, रौनक सारी,
भीड़-भाड़ जनपथ पर होगी क्या भारी?
चिड़ियाघर में जानवरों का एक रेला,
गुड़ियाघर में रंग-बिरंगा सा मेला।
कनाट प्लेस में खाएँगे मिलकर भल्ले,
अपलम बोले चपलम, अपने हैं हल्ले!
अपलम जी तो ऊँची टोपी हैं पहने,
चपलम जी की नीली टाई, क्या कहने!
दौड़-दौड़कर घूम रहे हैं वे दोनों,
बीच सड़क पर झूम रहे हैं वे दोनों।
घूम-घामकर फिर आए जंतर-मंतर,
उछल-उछलकर बोले है कितना सुंदर!
जंतर-मंतर में देखा ऐसा तंतर,
दोनों बोले भइया, यह है जादू-मंतर!
देख-देखकर अपलम जी मुसकाए हैं,
थोड़े खुश हैं, थोड़ा सा झल्लाए हैं।
अपलम जी, चपलम जी दिल्ली आए हैं,
समझ न आया, क्यों इतना बौराए हैं!